sorry1045 Hanuman Strotra | हनुमान स्त्रोत्र | Shri Hanuman Strotra and puja

Hanuman Ji Strotra

स्त्रोत्र

काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।

नहिं जप जोग न ध्यान करो । तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।।

खेलत खात अचेत फिरौं । ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।

हेरत पन्थ रहो निसि वासर । कारण कौन विलम्बु लगाई ।।

काहे विलम्ब करो अंजनी सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।

जो अब आरत होई पुकारत । राखि लेहु यम फांस बचाई ।।

रावण गर्वहने दश मस्तक । घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।

निशिचर मारि विध्वंस कियो । घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।।

जाइ पाताल हने अहिरावण । देविहिं टारि पाताल पठाई ।।

वै भुज काह भये हनुमन्त । लियो जिहि ते सब संत बचाई ।।

औगुन मोर क्षमा करु साहेब । जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।

भवन आधार बिना घृत दीपक । टूटी पर यम त्रास दिखाई ।।

काहि पुकार करो यही औसर । भूलि गई जिय की चतुराई ।।

गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु । रोषित देखि के जात डेराई ।।

छाड़े हैं माता पिता परिवार । पराई गही शरणागत आई ।।

जन्म अकारथ जात चले । अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।।

मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी । भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।

पूज कोऊ कृत काशी गयो । मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।।

जानत शेष महेष गणेश । सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।।

और अवलम्ब न आस छुटै । सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।

संतन के दुःख देखि सहैं नहिं । जान परि बड़ी वार लगाई ।।

एक अचम्भी लखो हिय में । कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।।

कहुं ताल मृदंग बजावत गावत । जात महा दुःख बेगि नसाई ।।

मूरति एक अनूप सुहावन । का वरणों वह सुन्दरताई ।।

कुंचित केश कपोल विराजत । कौन कली विच भऔंर लुभाई ।।

गरजै घनघोर घमण्ड घटा । बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।।

केतिक क्रूर बसे नभ सूरज । सूरसती रहे ध्यान लगाई ।।

भूपन भौन विचित्र सोहावन । गैर बिना वर बेनु बजाई ।।

किंकिन शब्द सुनै जग मोहित । हीरा जड़े बहु झालर लाई ।।

संतन के दुःख देखि सको नहिं । जान परि बड़ी बार लगाई ।।

संत समाज सबै जपते सुर । लोक चले प्रभु के गुण गाई ।।

केतिक क्रूर बसे जग में । भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।।

नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो । बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।

केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर । धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।।

स्वारथ जन्म भये तिनके । जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।।

का वरणों करनी तरनी जल । मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।।

जाहि जपै भव फन्द कटैं । अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।।

हेरि हिये मन में गुनिये मन । जात चले अनुमान बड़ाई ।।

यह जीवन जन्म है थोड़े दिना । मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।।

काहि कहै कोऊ व्यवहार करै । छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।।

रे मन चोर तू सत्य कहा अब । का करि हैं यम त्रास दिखाई ।।

जीव दया करु साधु की संगत । लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।।

रहा न औसर जात चले । भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।।

काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।

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